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Tuesday 25 June 2013

जब कोई मनुष्य अपने पूर्वजों के बारे में लज्जित होने लगे, तब समझ लो कि उसका अन्त आ गया। मैं यद्यपि हिन्दू जाति का एक नगण्य घटक हूं तथापि मुझे अपनी जाति पर गर्व है, अपने पूर्वजों पर गर्व है। मैं स्वयं को हिन्दू कहने में गर्व का अनुभव करता हूं। मुझे गर्व है कि मैं आपलोगों का एक तुच्छ सेवक हूं। तुम ऋषियों की सन्तान हो, तुम्हारा देशवासी कहलाने में मैं अपना गौरव मानता हूं। तुम उन महनीय ऋषियों के वंशज हो जो संसार में अद्धितीय रहे हैं। अन्यों से जो लें उसे अपने सांचे में ढाल लें अतएव, आत्मविश्वासी बनो। अपने पूर्वजों पर गर्व करो, उनके नाम से लज्जित मत होओ और अनुकरण मत करो, मत करो। जब कभी तुम दूसरे की प्रभुत्ता स्वीकार करोगे, तभी तुम अपनी स्वाधीनता खो बैठोगे। यहां तक कि आध्यात्मिक क्षेत्र में भी यदि तुम केवल दूसरों के आदेशानुसार चलोगे तो धीरे-धीरे तुम्हारी समस्त प्रतिभा-चिन्तनप्रतिभा भी समाप्त हो जाएगी। अपने पुरुषार्थ से अपनी आन्तरिक शक्तियों को विकसित करो, किन्तु अनुकरण मत करो। हां, दूसरो के पास अगर कुछ श्रेष्ठ है तो उसे ग्रहण कर लो। औरों के पास से भी हमें कुछ सीखना ही है। 
बीज को धरती में बो दो और उसे पर्याप्त मिट्टी, हवा तथा जल पोषण के लिए जुटा दो। किन्तु, जब वह बीज पौधा बनता है, एक विशाल वृक्ष में परिणत हो जाता है तो क्या वह मिट्टी बन जाता है, हवा बनता है, जल का रूप धारण कर लेता है? नहीं, वह बीज, मिट्टी, जल आदि जो भी पदार्थ उसके चारों ओर थे, उनसे अपना पोषण रस खींचकर अपनी प्रकृति के अनुकूल एक विशाल वृक्ष का रूप धारणकर लेता है। यही तुम्हारा आदर्श रहना चाहिए।

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