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Sunday 23 June 2013

हिन्दुस्थान ने हजारो वर्षों तक अजेय शक्ति एवं समृधि का जीवन जीते हुए भी केवल अपने आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक प्रकाश को ही सम्पूर्ण विश्व में प्रसृत किया | सुदूर अतीत एवं मध्य अतीत में भारत से गए हुए साधू,सन्यासी एवं विद्वानों ने जिस ज्ञान के आलोक का प्रसार किया - उसके साक्षी आज भी मेक्सिको, जापान, चीन, मंगोलिया, इंडोनेसिया, साइबेरिया, मलाया, आदि देश है | इस्लाम और ईसाइयत के समान हिंदुत्व का झंडा कभी भी रक्त और आँसुओ के समुद्र में से होकर सामरिक विजय की ओर नहीं बढा | अमरीका में जाकर बसने वाली यूरोप की जातियों के समान वहाँ के स्थानीय निवासियों के संहार जैसा कोई कलंक भारत के माथे पर कभी नहीं लगा | हिंदू ने कभी विनाश करने का नहीं, सदा विकास का ही सोचा है, जो जहाँ है वहाँ से उसे आगे बढ़ाने का प्रयत्न किया |

" कोई बतलाये काबुल में जाकर कितनी मस्जिद तोड़ी |
भूभाग नहीं, शत-शत मानव के हृदय जितने का निश्चय ||

यही कारण था की भारत के इस नैतिक ओर सांस्कृतिक अभियान का स्थानीय जनता ने स्वागत किया | यह जीत थी स्वार्थत्याग की, चारित्र्य की और उदात्त भावनाओ की, जिसने लोगो में विद्रोह के नहीं कृतज्ञता के भाव भरे | सदियाँ बीत जाने पर भी इस देश के प्रति वह कृतज्ञता का भाव कम नहीं हुआ | भारत का नाम सुनते ही डॉ. रघुवीर जैसे महामनीषी के सामने नतमस्तक होने वाले साइबेरिया के वयोवृद्ध की श्रधा में अथवा इंडोनेशिया से भारत आने वाले मुसलमान से गंगाजल लाने का आग्रह करने वाली उनकी पत्नी की इच्छा में क्या हमे इसी कृतज्ञता के दर्शन नहीं होते ? उन देशो के निवासियों के लिए भारत का प्रवास केवल प्रवास नहीं, तीर्थयात्रा है | 

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